लोगों की राय

बी एड - एम एड >> बी.एड. सेमेस्टर-1 तृतीय प्रश्नपत्र - शिक्षा के मनोवैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य

बी.एड. सेमेस्टर-1 तृतीय प्रश्नपत्र - शिक्षा के मनोवैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :215
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2699
आईएसबीएन :0

Like this Hindi book 0

5 पाठक हैं

बी.एड. सेमेस्टर-1 तृतीय प्रश्नपत्र - शिक्षा के मनोवैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य

प्रश्न- अभिप्रेरणा का क्या महत्त्व है? अभिप्रेरणा के विभिन्न सिद्धान्तों का वर्णन कीजिये।

सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न - अभिप्रेरणा के महत्त्व पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।

उत्तर -

अभिप्रेरणा का महत्त्व

अभिप्रेरणा का महत्त्व निम्नलिखित दृष्टियों से है-

1. शिक्षार्थियों का मानसिक विकास - शिक्षा का मुख्य उद्देश्य, शिक्षार्थियों को सिखाना तथा उनका मानसिक विकास करना है। शिक्षण-अधिगम की प्रक्रिया में यदि शिक्षार्थी रुचि न ले तो इस उद्देश्य की प्राप्ति नहीं हो सकती। को एण्ड को के शब्दों में- "अभिप्रेरक शिक्षार्थी को स्वयं की अधिगम क्रियाओं में प्रोत्साहन प्रदान करते हैं।” शिक्षार्थियों में, अधिगम की प्रक्रिया में प्रोत्साहन द्वारा अवधान, उत्साह एवं रुचि विकसित होती है।

2. स्वस्थ मनोवृत्ति एवं उच्चाकांक्षा - व्यवहार संचालन के मुख्य आधार स्वस्थ मनोवृत्ति व उच्चाकांक्षा है। उचित प्रकार के प्रेरकों का प्रयोग करने से शिक्षार्थियों में विभिन्न गुणों यथा-सहयोग, सद्भाव, आज्ञापालन, निष्ठा तथा मानसिक व्यापकता आदि का विकास होता है तथा वे सफलता प्राप्त कर सकते हैं।

3. मार्ग निर्देशन प्रदान करने के लिये - शिक्षार्थियों को समय-समय पर समुचित मार्ग निर्देशन प्रदान करना आवश्यक है। शैक्षिक क्षेत्र में, विषय का चयन, समायोजन, अनुशासन आदि से सम्बद्ध समस्याओं के निराकरण हेतु मार्ग निर्देशन आवश्यक है।

4. सीखने के लिये प्रोत्साहित करने हेतु - वांछनीय अधिगम के लिये प्रेरणा एक प्रबल एवं प्रमुख आधार के रूप में कार्य करती है। सीखने की गति, भाषा एवं स्वरूप आदि पर प्रेरणा गहन प्रभाव डालती है। शिक्षा के प्राथमिक स्तर तक प्रशंसा व दण्ड द्वारा शिक्षार्थियों को सीखने की दिशा में अग्रसर करने में शिक्षक को सफलता मिल सकती है, लेकिन शिक्षा के उच्च स्तर पर मात्र प्रशंसा व दण्ड के द्वारा बालकों को अभिप्रेरित नहीं किया जा सकता। यहाँ पर सबल प्रेरणा की आवश्यकता होती है। इसके बिना, वांछनीय अधिगम के निर्धारित लक्ष्य की प्राप्ति नहीं की जा सकती है।

6. वांछनीय व्यवहार परिवर्तन - बालक के विकास का मुख्य आधार, उसमें होने वाले व्यवहार परिवर्तन हैं। इन व्यवहार परिवर्तन का मुख्य माध्यम है शिक्षण। यह तभी सम्भव हो सकता है कि जब शिक्षार्थी शिक्षण से सम्बद्ध विभिन्न क्रियाओं में भाग ले। शिक्षार्थी द्वारा विभिन्न क्रिया-कलापों में भाग लेने के लिए आवश्यक है बालकों में वांछित व्यवहार परिवर्तन करने से पहले उन्हें विभिन्न प्रकार से प्रेरित किया जाये, इसके परिणामस्वरूप ही शिक्षार्थी अपने आप ही सक्रिय होकर व्यवहार परिवर्तनों की ओर अभिमुख हो सकेंगे।

6. चरित्र एवं सामाजिकता की भावना का विकास - चहुँमुखी विकास के अन्तर्गत, बालकों में चरित्र एवं सामाजिकता की भावना को विकसित करना, आज की शिक्षा की प्रमुख आवश्यकता है। चरित्र एवं सामाजिकता की भावना के अभाव में उनसे अच्छे व्यवहार की अपेक्षा करना निरर्थक है। इस भावना के अभाव में बालकों में अनेक अवगुणों का विकास वंशानुक्रम तथा वातावरण के प्रभाव-स्वरूप होता है। इसलिये यह आवश्यक है कि बालकों को समुचित वातावरण में रखकर, उन्हें सामाजिक व्यवहारों हेतु अभ्यास कराया जाये।

7. ध्यान एवं रुचि विकसित करने हेतु - बालकों में विषय-वस्तु के प्रति ध्यान केन्द्रित करने तथा उसके प्रति रुचि विकसित करने में ध्यान एवं रुचि का अत्यन्त महत्त्व है। बालकों द्वारा प्राप्त की गई उपलब्धि का ध्यान से सीधा सम्बन्ध होता है, क्योंकि ध्यान के अभाव में बालक उच्च उपलब्धि प्राप्त कर नहीं सकता। शिक्षार्थियों का ध्यान शिक्षा सम्बन्धी कार्यों में अधिक होता है। वे अन्य छात्रों की तुलना में अधिक उपलब्धि प्राप्त करते हैं। इसलिए शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया को सुचारु रूप से संचालित करने के लिये, अभिप्रेरकों के द्वारा, शिक्षार्थियों की पाठ्य वस्तु में रुचि विकसित करना आवश्यक है।

8. शिक्षार्थियों में अनुशासन की भावना विकसित करने के लिए - वर्तमान समय में बाल केन्द्रित शिक्षा हो जाने के कारण अनुशासन के स्थान पर स्वानुशासन की भावना के विकास पर अधिक बल दिया जा रहा है। शिक्षक उचित प्रेरकों के द्वारा छात्रों को वांछनीय व्यवहारों का अभ्यास कराकर, उनमें स्वानुशासन की भावना करने में सफल हो सकता है।

9. अधिकाधिक ज्ञानार्जन के लिए - अभिप्रेरणा का, अधिक-से-अधिक ज्ञान प्राप्ति के लिये भी महत्त्व है। शिक्षार्थी पाठ्य वस्तु को आत्मसात् करके, अधिकाधिक ज्ञानार्जन कर सकता है। शिक्षार्थी जितने अधिक ज्ञान का अर्जन करता है, उतनी ही अधिक उसमें विश्लेषण, संश्लेषण, मूल्यांकन व निर्णय लेने आदि की क्षमता आती है। कक्षा के सामान्य छात्रों को भी प्रशंसा, पुरस्कार, स्पर्धा आदि के द्वारा 'अधिकाधिक ज्ञान प्राप्त करने के लिये अभिप्रेरित कर सकता है। क्रो एण्ड को के अनुसार, "अध्यापक छात्रों में प्रतियोगिता की भावना विकसित करके, उन्हें अधिकाधिक ज्ञानार्जन हेतु प्रेरणा प्रदान कर सकता है।"

एक शर्मीले परन्तु बुद्धिमान बालक को सफल वक्ता बनाना

एक बुद्धिमान किन्तु शर्मीले बालक की सफल वक्ता बनाना उसकी अधिगम क्षमता का स तरीके से उपयोग करके किया जा सकता है। सबसे पहले तो उस बालक को अच्छे वक्ता हाने के क्या-क्या लाभ हैं जैसे कि अपनी बात को समाज में कहने की क्षमता का विकास करना, लोकंप्रियता की वृद्धि नेतृत्व का गुण विकसित होना इत्यादि से परिचित कराना आवश्यक होता है। तदुपरान्त उसे जिस विषय पर बोलने का अवसर उपलब्ध कराना हो तो उस विषय वस्तु में भली भाति परिचित कराना उसे विषय के विभिन्न बिन्दुओं, पहलुओं के विषय में उसे अच्छी तरह विचार-विमर्श करना तथा विचारो को संगठित कर लेने की क्षमता का विकास करना अवश्यक होता है। उसे स्वाध्याय तथा समूह में चर्चा करने कि लिए भी प्रेरित करना आवश्यक होता है। शर्मीले बालक प्राय: अन्तर्मुखी होते है। ऐसे में उनकी इस प्रवृति को दूर करने का प्रयास करना, उनको अधिक से अधिक बातचीत करने अपनी मन अभिव्यक्ति को व्यक्त करने तथा दूसरों की मन स्थिति को पता लगाने का अवसर एवं प्रेरणा प्रदान करने से उसमें कुशल वक्ता बनाने के गुणों का विकास किया जा सकता है। साथ ही उन बालकों में इस बात का आत्मविश्वास उत्पन्न करना कि वे एक कुशल वक्ता बनने की क्षमता रखते हैं तथा वे एक कुशल तथा सफल वक्ता बन सकते है। तथा कभी भी हार न मानने के लिए प्रेरित करना चाहिए। सफलता का सबसे बड़ा सूत्र यही है कि आप कभी भी हार न माने हार के विषय में या असफलता के विषय में सोचे तक नहीं क्योंकि हम जैसा सोचते है हमारी मनोदशा वै सी ही बन जाती है और हमारा व्यवहार हमारी मनोदशा से प्रत्यक्ष प्रभवित होता है। इस लिए बालक में आत्मविश्वास तथा आत्मबल को प्रचुरता के साथ एवं संयमित तरीके से उत्पन्न करने की आवश्यकता होती है। शर्मीले बालकों में प्राय: इच्छा शक्ति की भी कमी पायी जाती है। इसलिए शिक्षक को चाहिए कि उसकी इच्छा शक्ति को जाग्रत करके उसे दृढ़ता के साथ अभिव्यक्त होने के लिए प्रेरित करना अति अवश्यक है। इच्छा शक्ति के अभाव में वह सदैव अपनी अभिव्यक्ति को दबाता रहेगा तथा कभी भी कुशल वक्ता नहीं बन पाएगा। कुशल वक्ता बनने के लिए स्मारण शक्ति का होना भी अति आवश्यक है। वर्तमान भारतीय नेताओं के कुशल वक्ता होने का यदि आकलन किया जाए तो एकतरफ बहुजन समाज पार्टी की नेता मायावती की भाषण कला जो कभी बिना देखे नही बोल पाती वही दूसरी ओर भारतीय जनता पार्टी के वैसे तो सभी नेताओं एवं प्रवक्ताओं में कुशल वक्ता के गुणपाए जाते है किन्तु माननीव प्रधान मन्त्री श्री नरेन्द्रमोदी की भाषण कला देखें तो आश्चर्य होता है कि एक से ले कर माननीय घंटा दो घंटे तक भी बिना रूके बिना पढ़े एक-एक शब्द एवं वाक्य महत्वपूर्ण बोलने की क्षमता रखते है। यह उनके दृढ इच्छा व्यक्ति, विचारों का संगठन, शब्द मण्डार तथा स्मृति शक्ति के साथ-साथ ज्ञान और अनुभव जो उनकों कुशल एवं सफला वैश्विक नेता एवं वक्ता बनाती है। अर्न्तमुखी तथा शर्मीले बालकों को इस बात का डर हमेशा बना रहता है कि उससे कोई गलती नहीं जाय, कोई उनकी निन्दा न करने लगे कोई उनकी हंसी न उड़ाए। तो इसके लिए शिक्षक को चाहिए कि वह बालक में इन बातों का डर दूर करने के लिए प्रेरित करें तथा अपनी बातों को बड़े सहज एवं सरल तरीके से कहने का प्रयास करे किसी की नकल या बनावटीपन लाने का बिल्कुल भी प्रयास मत करें और नकल की बजाय अकल विवेक का प्रयोग करे। परिस्थितियों के अनुकूल व्यवहार को परिमार्जित कर ले तथा अपने सेवेगों पर नियन्त्रण स्थापित करने की क्षमता को विकासित करें।

एक शर्मीले एवं बुद्धिमान बालक को निम्न प्रकार की सुविधाएँ देकर हम उसे कुशल वक्ता बना सकते है -

1. बालक को प्रर्याप्त मनोवैज्ञानिक चिकित्सीय सहायता प्रदान करके।
2. बालक के आंकाक्षा स्तर को बढा करके जिससे वह अपने लक्ष्य की प्राप्ति हेतु स्वयं को और विकसित कर सके।
3. कक्षा में बालक को पर्याप्त बोलने का अवसर प्रदान करके।
4. समय-समय पर बालक की प्रंशसा करके।
5. बालक के द्वारा कुछ अच्छा प्रर्दशन करने पर उसे पर्याप्त पुरस्कार देकर।
6. बालक के साथियों के सम्मुख उसे बोलने का पर्याप्त अवसर देकर।
7. माता-पिता को सलाह दे कि वे घर वे घर में भयमुक्त वातावरण का निर्माण करे जिससे वह अपने बात कह सके।
8. उच्च सफलता के स्तर को निर्मित करके।
9. विभिन्न प्रतियोगिताओं में भाग लेने के अवसर को बढ़ा कर।
10. पर्याप्त निर्देशन के माध्यम से उसके आत्मविश्वास स्तर को बढ़ाकर।
11. कक्षा में उसे कक्षा मानीटर बनाकर।
12. उपयुक्त ICT का प्रयोग करके।

इस प्रकार हम विभिन्न प्रकार की शिक्षण विधियों व तकनीक का प्रयोग करके शर्मीले परन्तु बुद्धिमान बालक को कुशल वक्ता बनाया जा सकता है।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. प्रश्न- शिक्षा मनोविज्ञान का अर्थ बताइये एवं इसकी प्रकृति को संक्षेप में स्पष्ट कीजिये।
  2. प्रश्न- मनोविज्ञान और शिक्षा के सम्बन्ध का विवेचन कीजिये और बताइये कि मनोविज्ञान ने शिक्षा सिद्धान्त और व्यवहार में किस प्रकार की क्रान्ति की है?
  3. प्रश्न- शिक्षा के क्षेत्र में मनोविज्ञान की भूमिका या महत्त्व बताइये।
  4. प्रश्न- शिक्षा मनोविज्ञान का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये। शिक्षक प्रशिक्षण में इसकी सम्बद्धता क्या है?
  5. प्रश्न- वृद्धि और विकास से आपका क्या अभिप्राय है? विवेचना कीजिए।
  6. प्रश्न- वृद्धि और विकास में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  7. प्रश्न- वृद्धि और विकास को परिभाषित करें तथा वृद्धि एवं विकास के महत्वपूर्ण सिद्धान्तों की विवेचना कीजिए।
  8. प्रश्न- बाल विकास के प्रमुख तत्त्वों का उल्लेख कीजिए।
  9. प्रश्न- विकास से आपका क्या अभिप्राय है? बाल विकास की विभिन्न अवस्थाएँ कौन- कौन-सी हैं? विवेचना कीजिए।
  10. प्रश्न- बाल विकास के अध्ययन के महत्त्व को समझाइये।
  11. प्रश्न- शिक्षा मनोविज्ञान के प्रमुख उद्देश्यों का उल्लेख कीजिये।
  12. प्रश्न- मनोविज्ञान एवं अधिगमकर्त्ता के सम्बन्ध की विवेचना कीजिये।
  13. प्रश्न- शैक्षिक सिद्धान्त व शैक्षिक प्रक्रिया के लिये शैक्षिक मनोविज्ञान का क्या महत्त्व है?
  14. प्रश्न- शिक्षा मनोविज्ञान का क्षेत्र स्पष्ट कीजिये।
  15. प्रश्न- शिक्षा मनोविज्ञान के कार्यों को स्पष्ट कीजिये।
  16. प्रश्न- मनोविज्ञान की विभिन्न परिभाषाओं को स्पष्ट कीजिये।
  17. प्रश्न- वृद्धि का अर्थ एवं प्रकृति स्पष्ट कीजिए।
  18. प्रश्न- अभिवृद्धि तथा विकास से क्या अभिप्राय है? स्पष्ट कीजिए।
  19. प्रश्न- विकास का क्या अर्थ है? स्पष्ट कीजिए।
  20. प्रश्न- वृद्धि तथा विकास के नियमों का शिक्षा में महत्त्व स्पष्ट कीजिए।
  21. प्रश्न- बालक के सम्बन्ध में विकास की अवधारणा क्या है? समझाइये |
  22. प्रश्न- विकास के सामान्य सिद्धान्तों का वर्णन कीजिये।
  23. प्रश्न- अभिवृद्धि एवं विकास में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  24. प्रश्न- बाल विकास की विभिन्न अवस्थाएँ कौन-कौन सी हैं? उल्लेख कीजिए।
  25. प्रश्न- बाल विकास में वंशानुक्रम का क्या योगदान है?
  26. प्रश्न- शैशवावस्था क्या है? इसकी प्रमुख विशेषतायें बताइये। इस अवस्था में शिक्षा किस प्रकार की होनी चाहिये।
  27. प्रश्न- शैशवावस्था की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिये।
  28. प्रश्न- शैशवावस्था में शिशु को किस प्रकार की शिक्षा दी जानी चाहिये?
  29. प्रश्न- बाल्यावस्था क्या है? बाल्यावस्था की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  30. प्रश्न- बाल्यावस्था में शिक्षा का स्वरूप कैसा होना चाहिए? स्पष्ट कीजिए।
  31. प्रश्न- 'बाल्यावस्था के विकासात्मक कार्यों का उल्लेख कीजिए।
  32. प्रश्न- किशोरावस्था से आप क्या समझते हैं? किशोरावस्था के विकास के सिद्धान्त की. विवेचना कीजिए।
  33. प्रश्न- किशोरावस्था की मुख्य विशेषताएँ स्पष्ट कीजिए।
  34. प्रश्न- किशोरावस्था में शिक्षा के स्वरूप की विस्तृत विवेचना कीजिए।
  35. प्रश्न- जीन पियाजे के संज्ञानात्मक विकास के सिद्धान्तों पर प्रकाश डालिए।
  36. प्रश्न- शैशवावस्था की प्रमुख समस्याएँ बताइए।
  37. प्रश्न- जीन पियाजे के विकास की अवस्थाओं के सिद्धांत को समझाइये |
  38. प्रश्न- कोहलर के प्रयोग की विशेषताएँ लिखिए।
  39. प्रश्न- निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञात कीजिए। (शैक्षिक मनोविज्ञान एवं मानव विकास)
  40. प्रश्न- निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञात कीजिए। (मानव वृद्धि एवं विकास )
  41. प्रश्न- निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञात कीजिए। (व्यक्तिगत भिन्नता )
  42. प्रश्न- निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञात कीजिए। (शैशवावस्था, बाल्यावस्था एवं किशोरावस्था )
  43. प्रश्न- सीखने की संकल्पना को समझाइए। 'सूझ' सीखने में किस प्रकार सहायता करती है?
  44. प्रश्न- अधिगम की प्रकृति को समझाइए।
  45. प्रश्न- सीखने की प्रक्रिया से आप क्या समझते हैं?
  46. प्रश्न- सूझ सीखने में किस प्रकार सहायता करती है?
  47. प्रश्न- 'प्रयत्न एवं त्रुटि' तथा 'सूझ' द्वारा सीखने में भेद कीजिए।
  48. प्रश्न- अधिगम से आप क्या समझते हैं? स्पष्ट कीजिए।
  49. प्रश्न- अधिगम को प्रभावित करने वाले कारक बताइए।
  50. प्रश्न- थार्नडाइक के सीखने के प्रयोग का उल्लेख कीजिए और बताइये कि इस प्रयोग द्वारा निकाले गये निष्कर्ष, शिक्षण कार्य को कहाँ तक सहायता पहुँचाते हैं?
  51. प्रश्न- थार्नडाइक के सीखने के सिद्धान्त के प्रयोग का वर्णन कीजिए।
  52. प्रश्न- थार्नडाइक के सीखने के सिद्धान्त का शिक्षा में उपयोग बताइये।
  53. प्रश्न- शिक्षण में प्रयत्न तथा भूल द्वारा सीखने के सिद्धान्त का मूल्यांकन कीजिये।
  54. प्रश्न- 'अनुबन्धन' से क्या अभिप्राय है? पावलॉव के सिद्धान्त का वर्णन कीजिए।
  55. प्रश्न- अनुकूलित-अनुक्रिया को नियंत्रित करने वाले कारक कौन-कौन से हैं?
  56. प्रश्न- अनुकूलित-अनुक्रिया को प्रभावित करने वाले कारक कौन-से हैं?
  57. प्रश्न- अनुकूलित अनुक्रिया से आप क्या समझते हैं? इस सिद्धान्त का शिक्षा में प्रयोग बताइये।
  58. प्रश्न- अनुकूलित-अनुक्रिया सिद्धान्त का मूल्यांकन कीजिए।
  59. प्रश्न- स्किनर का सक्रिय अनुकूलित-अनुक्रिया सिद्धान्त क्या है? उल्लेख कीजिए।
  60. प्रश्न- स्किनर के सक्रिय अनुकूलित-अनुक्रिया सिद्धान्त का वर्णन कीजिए।
  61. प्रश्न- पुनर्बलन का क्या अर्थ है? इसके प्रकार बताइये।
  62. प्रश्न- पुनर्बलन की सारणियाँ वर्गीकृत कीजिए।
  63. प्रश्न- सक्रिय अनुकूलित-अनुक्रिया. सिद्धान्त अथवा पुर्नबलन का शिक्षा में प्रयोग बताइये।
  64. प्रश्न- अधिगम के गेस्टाल्ट सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए और इस सिद्धान्त के सबल तथा दुर्बल पक्ष की विवेचना कीजिए।
  65. प्रश्न- समग्राकृति पूर्णकारवाद की विशेषतायें बताइये।
  66. प्रश्न- कोहलर के प्रयोग की विशेषताएँ लिखिए।
  67. प्रश्न- अन्तर्दृष्टि तथा सूझ के सिद्धान्त से सीखने की क्या विशेषताएँ हैं।
  68. प्रश्न- पूर्णकारवाद के नियम को स्पष्ट कीजिए।
  69. प्रश्न- अन्तर्दृष्टि को प्रभावित करने वाले कारक एवं शिक्षा में प्रयोग बताइये।'
  70. प्रश्न- अन्तर्दृष्टि सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
  71. प्रश्न- रॉबर्ट मिल्स गेग्ने का जीवन-परिचय दीजिए तथा इनके द्वारा बताये गये सिद्धान्त का सविस्तार वर्णन कीजिए।
  72. प्रश्न- गेग्ने के सिद्धान्त का वर्णन कीजिए।
  73. प्रश्न- गेग्ने के योगदान को संक्षेप में बताइये।
  74. प्रश्न- विभिन्न परिभाषाओं के आधार पर अभिप्रेरणा का अर्थ स्पष्ट करते हुए अभिप्रेरणा के प्रकारों का वर्णन कीजिए।।
  75. प्रश्न- अभिप्रेरणा के प्रकारों का वर्णन कीजिए।
  76. प्रश्न- अभिप्रेरणा को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारक कौन-से हैं? उल्लेख कीजिये।
  77. प्रश्न- अभिप्रेरणा का क्या महत्त्व है? अभिप्रेरणा के विभिन्न सिद्धान्तों का वर्णन कीजिये।
  78. प्रश्न- अभिप्रेरणा के विभिन्न सिद्धान्तों का उल्लेख कीजिए।
  79. प्रश्न- अभिप्रेरणा का मूल प्रवृत्ति सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए।
  80. प्रश्न- अभिप्रेरणा का मूल मनोविश्लेषणात्मक सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए।
  81. प्रश्न- अभिप्रेरणा का उद्दीपन अनुक्रिया सिद्धान्त को समझाइये |
  82. प्रश्न- शैक्षिक दृष्टि से अभिप्रेरणा का क्या महत्त्व है?
  83. प्रश्न- आवश्यकता चालन एवं उद्दीपन के सम्बन्ध की व्याख्या कीजिए।
  84. प्रश्न- कक्षा शिक्षण में पुरस्कार या प्रोत्साहन की क्या आवश्यकता है?
  85. प्रश्न- अधिगम स्थानान्तरण क्या है? अधिगम स्थानान्तरण के प्रकार बताइये।
  86. प्रश्न- अधिगम स्थानान्तरण के प्रकार बताइए।
  87. प्रश्न- अधिगम स्थानान्तरण से क्या तात्पर्य है? अधिगम स्थानान्तरण को प्रभावित करने वाले कारकों की विवेचना कीजिए।
  88. प्रश्न- अधिगम स्थानान्तरण की दशाओं पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  89. प्रश्न- अधिगमान्तरण के विभिन्न सिद्धान्तों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  90. प्रश्न- निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञात कीजिए। (अधिगम )
  91. प्रश्न- निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञात कीजिए। (अभिप्रेरणा )
  92. प्रश्न- निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञात कीजिए। (अधिगम का स्थानान्तरण )
  93. प्रश्न- विभिन्न परिभाषाओं के आधार पर बुद्धि का अर्थ स्पष्ट करते हुये बुद्धि की प्रकृति या स्वरूप तथा उसकी विशेषताओं का उल्लेख कीजिये।
  94. प्रश्न- बुद्धि की प्रकृति एवं स्वरूप का वर्णन कीजिए।
  95. प्रश्न- बुद्धि की विशेषताओं को समझाइये।
  96. प्रश्न- बुद्धि परीक्षा के विभिन्न प्रकार कौन-से हैं? वैयक्तिक व सामूहिक बुद्धि परीक्षा की तुलना कीजिये।
  97. प्रश्न- सामूहिक बुद्धि परीक्षण से आप क्या समझते हैं?
  98. प्रश्न- शाब्दिक व अशाब्दिक तथा उपलब्धि परीक्षण को स्पष्ट कीजिये।
  99. प्रश्न- वाचिक अथवा अवाचिक वैयक्तिक बुद्धि परीक्षण से क्या अभिप्राय है? उल्लेख कीजिये।
  100. प्रश्न- स्टैनफोर्ड बिने क्या है?
  101. प्रश्न- बर्ट द्वारा संशोधित बुद्धि परीक्षण को बताइये।
  102. प्रश्न- अवाचिक वैयक्तिक बुद्धि परीक्षण के प्रकार बताइये।
  103. प्रश्न- वाचिक सामूहिक बुद्धि परीक्षण कौन-से हैं?
  104. प्रश्न- अवाचिक सामूहिक बुद्धि परीक्षणों का वर्णन कीजिये।
  105. प्रश्न- बुद्धि के प्रमुख सिद्धान्तों की विवेचना कीजिए।
  106. प्रश्न- सृजनात्मकता से क्या तात्पर्य है? इसके स्वरूप तथा प्रकृति की विवेचना कीजिए।
  107. प्रश्न- सृजनात्मक की परिभाषाएँ बताइए।
  108. प्रश्न- सृजनात्मकता के स्वरूप बताइए।
  109. प्रश्न- सृजनात्मकता से आप क्या समझते हैं? अपने शिक्षण को अधिक सृजनशील बनाने हेतु आप क्या करेंगे? विवेचना कीजिए।
  110. प्रश्न- सृजनात्मकता की परिभाषा दीजिए तथा सृजनात्मक छात्रों का पता लगाने की विधि स्पष्ट कीजिए।
  111. प्रश्न- सृजनात्मकता एवं समस्या समाधान पर टिप्पणी लिखिए।
  112. प्रश्न- कक्षा वातावरण किस प्रकार विद्यार्थियों की सृजनात्मकता के विकास को प्रभावित करता है? सृजनात्मकता को विकसित करने हेतु आप ब्रेनस्टार्मिंग का प्रयोग कैसे करेंगे?
  113. प्रश्न- गिलफोर्ड के त्रिआयामी बुद्धि सिद्धान्त का वर्णन कीजिए।
  114. प्रश्न- समूह कारक या संघसत्तात्मक सिद्धान्त की विवेचना कीजिए।
  115. प्रश्न- बुद्धि के बहु-प्रकारीय सिद्धान्त की संक्षेप में व्याख्या कीजिए।
  116. प्रश्न- निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञात कीजिए। (बुद्धि एवं सृजनात्मकता )
  117. प्रश्न- व्यक्तित्व क्या है? उनका निर्धारण कैसे होता है? व्यक्तित्व की प्रकृति का वर्णन कीजिए।
  118. प्रश्न- व्यक्तित्व के लक्षणों की स्पष्ट व्याख्या कीजिए।
  119. प्रश्न- व्यक्तित्व के विकास को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारक कौन-कौन हैं?
  120. प्रश्न- व्यक्तित्व के जैविक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक निर्धारकों का वर्णन कीजिए।
  121. प्रश्न- व्यक्तित्व के विभिन्न उपागमों या सिद्धान्तों का वर्णन कीजिये।
  122. प्रश्न- समूह चर्चा से आपका क्या अभिप्राय है? समूह चर्चा के उद्देश्य एवं मान्यताएँ स्पष्ट कीजिए।
  123. प्रश्न- व्यक्तित्व मूल्यांकन की प्रश्नावली विधि को समझाइए।
  124. प्रश्न- व्यक्तित्वं मूल्यांकन की अवलोकन विधि से आप क्या समझते हैं?
  125. प्रश्न- मानसिक स्वास्थ्य का अर्थ बताइए तथा छात्रों की मानसिक अस्वस्थता के क्या कारण हैं? शिक्षक उन्हें दूर करने में उनकी सहायता कैसे कर सकता है?
  126. प्रश्न- बालकों के मानसिक अस्वस्थता के क्या कारण हैं?
  127. प्रश्न- बालकों के मानसिक स्वास्थ्य में उन्नति के उपाय बताइये।
  128. प्रश्न- मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान के विचार को स्पष्ट कीजिए। विद्यालय की परिस्थितियाँ शिक्षक के मानसिक स्वास्थ्य को किस प्रकार प्रभावित करती हैं?
  129. प्रश्न- विद्यालय की परिस्थितियाँ शिक्षक के मानसिक स्वास्थ्य को किस प्रकार प्रभावित करती हैं?
  130. प्रश्न- मानसिक स्वास्थ्य का अर्थ स्पष्ट कीजिए। मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति में कौन-सी विशेषता होती है?
  131. प्रश्न- मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति में कौन-कौन-सी विशेषताएँ होती हैं?
  132. प्रश्न- मानसिक स्वास्थ्य के उपायों पर प्रकाश डालिए।
  133. प्रश्न- कौन-कौन से कारक मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं और शिक्षक के मानसिक स्वास्थ्य को अच्छा रखने के उपाय बताइए।
  134. प्रश्न- शिक्षक के मानसिक स्वास्थ्य को अच्छा बनाए रखने के उपाय बताइये।
  135. प्रश्न- मानसिक स्वास्थ्य के प्रमुख तत्व बताइये।
  136. प्रश्न- शिक्षक के मानसिक स्वास्थ्य को उन्नत करने वाले प्रमुख कारक कौन-से हैं?
  137. प्रश्न- मानसिक स्वास्थ्य का महत्व बताइये।
  138. प्रश्न- बालक के मानसिक स्वास्थ्य के विकास में विद्यालय की क्या भूमिका होती है?
  139. प्रश्न- बालक के मानसिक स्वास्थ्य में उसके कुटम्ब का क्या योगदान है?-
  140. प्रश्न- मानसिक स्वास्थ्य के नियमों की विवेचना कीजिए।
  141. प्रश्न- मानसिक स्वच्छता क्या है?
  142. प्रश्न- निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञात कीजिए। (व्यक्तित्व )
  143. प्रश्न- निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञात कीजिए। (मानसिक स्वास्थ्य)

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book